यदि आप अपने जीवन को संपूर्णता से जीना चाहते हैं तो पहले आपको अपनी संभावना के बारे में जानना होगा, यह जानना होगा कि आप कौन हैं।
ध्यान इसी जानने की ओर एक कदम है। इस सजगता के विज्ञान की एक प्रक्रिया है।
आंतरिक विज्ञान का सौंदर्य यह है कि जो भी मार्ग तलाश रहा है, तथा अपने भीतर प्रयोग कर रहा है, यह उसे अपने
एकांत में ऐसा करने में सहायता करता है। यह किसी भी बाह्य सत्ता पर निर्भरता, किसी संस्था के साथ जुड़ने की आवश्यकता को तथा किसी विचारधारा-विशेष को मानने की विवशता को समाप्त करता है। एक बार आपके कदम सध गये तो आप अपने, केवल अपने ढंग से अपने मार्ग पर चलने लगते हैं ।
कुछ ध्यान-विधियों में शांत व स्थिर बैठना आवश्यक है। परंतु हममें से अधिकतर लोगों के संग्रहीत मनोदैहिक तनाव के कारण ऐसा करना कठिन सा लगता है। इससे पहले कि हम अपनी चेतना के आंतरिक शक्ति-भंडार तक पहुंचने की आशा रखें, हमें पहले अपने तनावों से मुक्त होना होगा।
जब तुम चिंता अनुभव करो, बहुत चिंताग्रस्त होओ, तब इस विधि का प्रयोग करो। इसके लिए क्या करना होगा? जब साधारणतः तुम्हें चिंता घेरती है तब तुम क्या करते हो? सामान्यतः क्या करते हो? तुम उसका हल ढूंढते हो; तुम उसके उपाय ढूंढते हो। लेकिन ऐसा करके तुम और भी चिंताग्रस्त हो जाते हो, तुम उपद्रव को बढ़ा लेते हो। क्योंकि विचार से चिंता का समाधान नहीं हो सकता है; विचार के द्वारा उसका विसर्जन नहीं हो सकता है। कारण यह है कि विचार खुद एक तरह की चिंता है।
यह विधि कहती है कि चिंता के साथ कुछ मत करो; सिर्फ सजग होओ, बस सावचेत रहो।
मैं तुम्हें एक दूसरे झेन सदगुरु बोकोजू के संबंध में एक पुरानी कहानी सुनाता हूं। वह एक गुफा में अकेला रहता था, बिलकुल अकेला। लेकिन दिन में या कभी-कभी रात में भी, वह जोरों से कहता था, "बोकोजू।' यह उसका अपना नाम था। और फिर वह खुद कहता, "हां महोदय, मैं मौजूद हूं।' और वहां कोई दूसरा नहीं होता था।
उसके शिष्य उससे पूछते थे, 'क्यों आप अपना ही नाम पुकारते हैं, और फिर खुद कहते हैं, हां महोदय, मैं मौजूद हूं?'
बोकोजू ने कहा, 'जब भी मैं विचार में डूबने लगता हूं तो मुझे सजग होना पड़ता है, और इसीलिए मैं अपना नाम पुकारता हूं, बोकोजू! जिस क्षण मैं बोकोजू कहता हूं और कहता हूं कि हां महाशय, मैं मौजूद हूं, उसी क्षण विचारणा, चिंता विलीन हो जाती है।'
फिर अपने अंतिम दिनों में, आखिरी दोत्तीन वर्षों में उसने कभी अपना नाम नहीं पुकारा, और न ही यह कहा कि हां, मैं मौजूद हूं।
तो शिष्यों ने पूछा, 'गुरुदेव, अब आप ऐसा क्यों नहीं करते?'
बोकोजू ने कहा, "अब बोकोजू सदा मौजूद रहता है। वह
सदा ही मौजूद है, इसलिए पुकारने की जरूरत न रही। पहले मैं खो जाया करता था, और चिंता मुझे दबा लेती थी, आच्छादित कर लेती थी, बोकोजू वहां नहीं होता था, तो मुझे उसे स्मरण करना पड़ता था। और स्मरण करते ही चिंता विदा हो जाती थी।"
इसे प्रयोग करो। बहुत सुंदर विधि है यह। अपने नाम का ही प्रयोग करो। जब भी तुम्हें गहन चिंता पकड़े तो अपना ही नाम पुकारो--बोकोजू या और कुछ, लेकिन अपना ही नाम हो--और फिर खुद ही कहो कि हां महोदय, मैं मौजूद हूं। और तब देखो कि क्या फर्क पड़ता है। चिंता नहीं रहेगी; कम से कम एक क्षण के लिए तुम्हें बादलों के पार की एक झलक मिलेगी। और फिर वह झलक गहराई जा सकती है। तुम एक बार जान गए कि सजग होने पर चिंता नहीं रहती, विलीन हो जाती है, तो तुम स्वयं के संबंध में, अपनी आंतरिक व्यवस्था के संबंध में गहन बोध को उपलब्ध हो गए।
Osho: Excerpted from The Book of Secrets
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English Version
If you want to live a more fulfilled life, first you will want to know your potential, who you really are.
Meditation is the route to that knowing. It is the methodology of the science of awareness.
The beauty of the inner science is that it enables whoever wants to explore and to experiment within, to do so
alone. This eliminates dependence on an outer authority, the need to be affiliated with any organization and the obligation to accept a certain ideology. Once you understand the steps, you walk the walk in your own, individual way
Many meditative techniques require one to sit still and silent. But for most of us accumulated stress in our bodymind makes that difficult. Before we can hope to access our inner powerhouse of consciousness, we need to let go of our tensions
Finding Silence in the Center of Sound
Close your eyes and feel the whole universe filled with sound. Feel as if every sound is moving toward you and you are the center. This feeling that you are the center will give you a very deep peace. The whole universe becomes the circumference and you are the center, and everything is moving toward you, falling toward you.
The center is without sound, that is why you can hear sounds — a sound cannot hear another sound. The center is absolute silence. That is why you can hear sounds entering you, coming to you, penetrating you, encircling you.
If you can find out where is the center, where is the field in you to where every sound is coming, suddenly sounds will disappear and you will enter into soundlessness. If you can feel a center where every sound is being heard, there is a sudden transference of consciousness. One moment you will be hearing the whole world filled with sounds, and another moment your awareness will suddenly turn in and you will hear the soundlessness, the center of life.
Do not start thinking about the sounds — that this is good and that is bad, and this is disturbing and that is very beautiful and harmonious. Simply think of the center. Just remember that you are the center and all the sounds are moving toward you — every sound, whatsoever the sort.
Sounds are not heard in the ears, the ears cannot hear them. The ears only do a transmission work, and in the transmission they cut out much which is useless for you. They choose, they select, and then those sounds enter you. Now find out within, where is your center. The ears are not the center, you are hearing from somewhere deep down. The ears are simply sending you the selected sounds. Where are you? Where is your center?
Osho
Excerpted from The Book of Secrets
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